भवानी शंकरौ वन्दे श्रद्धा विश्वास रूपिणौ।
याभ्यां बिना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्॥
अर्थात— भवानी और शंकर की वंदना करता हूं, जो श्रद्धा और विश्वास स्वरूप हैं। इनके बिना सिद्ध भी अंतःकरण में स्थित परेश्वर को नहीं देख सकते।
गोस्वामी तुलसीदास जी श्री रामकथा को जन— जन तक पहुंचाने वाले सेतु रहे हैं। श्री रामचरित मानस लोकप्रिय ग्रंथ है, जिसका पठन— पाठन कई दृष्टिकोणों से किया जाता रहा है और किया जाता रहेगा। करोड़ों लोग तुलसी बाबा के इस अमरग्रंथ का पाठ करके इहलोक और परलोक सुधारते रहे हैं।
तुलसी बाबा का एक— एक शब्द मनोमस्तिष्क को स्पर्श करता है। पढ़ना सीखा तो उनके ग्रंथों का पाठ करने लगा। जब भी द्विधा में स्वयं को पाता हूं तो उनकी कोई पंक्ति और प्रसंग कौंध जाता है और रास्ता स्पष्ट हो जाता है। मंगलाचरण की जिन पंक्तियों का उल्लेख किया है, इनसे हजारों बार अपने लिए रास्ता खोजा है और निराशा में आशा पाई है। भवानी श्रद्धा हैं और शंकर विश्वास हैं। श्रद्धा और विश्वास ही हमें स्वयं में छिपी दैवीय शक्ति का दर्शन कराते हैं। श्रद्धा और विश्वास के बिना जीवन में बढ़ा कुछ नहीं किया जा सकता। भवानी और शंकर को इन रूपों में स्मरण करते हुए जीवन पथ सुगम हो जाता है।
—याज्ञवल्क्य
श्रावण शुक्ल सप्तमी
तुलसी जयंती 2025

